आपके लिए कहा जाता है कि आप गंभीर साहित्यकार की श्रेणी
मैं खुद कह ता हूं कि मैं लिटरेचर नहीं लि खता हूं. मैं चाहता हूं कि मेरी किताबें आम बच्चे पढ़ें. सिंपल किताबें हों, तभी तो बच्चे पढ़ते हैं इतने सारे. मैं चाहता हूं कि ज़ायादा लोग पढ़ें और वही मेरा उद्देश्य रहा है. अरविंद अडिगा को, अरुंधति रॉय को बुकर प्राइज़ मिला है, कभी आप भी वहां तक पहुंचने की सोचते हैं? सबको सब कुछ नहीं मिलता है ज़िंदगी में. मिले तो अच्छा है, लेकिन मुझे लगता नहीं कि मुझे मिल सकता है. शायद मैं इतना अच्छा लिखता भी नहीं. लेकिन मुझे भी अपनी तरह का काम करने का हक़ है. अवॉर्ड नहीं जीते तो क्या, दिल तो जीत लिए. परसों एमेज़ॉन ने किताबों की डिलीवरी करवाई मुझसे. मैं खुद जाकर डिलीवर कर रहा था जिन्होंने प्री -ऑर्डर की है मेरी किताब. मैंने एक स्लम में जाकर भी डिलीवर की अपनी किताब. धारावी में रहने वाली एक लड़की ने मेरी किताब ऑर्डर की थी. वो पल मेरे लिए बुकर प्राइज़ से बड़ा था कि एक स्लम में रह ने वाली लड़की को मेरी कि ताब पसंद आ गई बजाय कि लंदन में रहने वाले किसी को आई और मुझे अवॉर्ड दे दिया. आप हाशिए के लोगों को अपनी किताब पढ़ा ना तो चाहते हैं, लेकिन वे कभी मुख्य ...