हिंदी में बात करता हूं, बेटी पिछड़ा समझती है : मनोज बाजपेयी
कृषि मंत्रालय में डॉ विंसेंट की प्रयोगशाला में उन्होंने हमें औषधियां
दिखाई और इस पौधे के कुछ प्रभावों पर हमसे बातचीत की. उनकी योजना में पिसी
हुई जड़ को एक पाउडर के रूप में बेचना है जिसे पानी के साथ मिलाया जा सके
और ड्रिंक को बनाया जा सके.
वे कहते हैं, "यह अनुचित है कि यह दुनिया के कुछ हिस्सों में अवैध बताया जाता है. वानुआतु अच्छे कावा का उत्पादन कर सकता है और यह हमारे लिए महत्वपूर्ण भी हो सकता है. बस इसे गलत समझा गया है."
मनोज बाजपेयी ने बीबीसी से बातचीत में हिंदी भाषा और फ़िल्म इंडस्ट्री को लेकर कहा," अगर मैं हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में काम कर रहा हूं और अगर मैं हिंदी जानता हूं तो ये मेरी कमज़ोरी नहीं है. ये मेरी ताकत है. जिसको हिंदी नहीं आती है, वो अपना सोचे."
ये माना जाता है कि हिंदी फ़िल्मों में काम कर रहे अधिकतर अभिनेताओं को हिंदी भाषा नहीं आती. इसलिए उन्हें फ़िल्म की स्क्रिप्ट भी रोमन में लिखकर दी जाती है लेकिन मनोज बाजपेयी फ़िल्म की पटकथा देवनागरी भाषा में ही लेते हैं.
वो कहते हैं कि किसी की ये हिम्मत नहीं होती कि उन्हें रोमन में स्क्रिप्ट दे. ऐसा हुआ तो वो स्क्रिप्ट फेंक देंगे.
मनोज बाजपेयी ने ये माना कि हिंदी 'उनकी मातृभाषा नहीं है और हिंदी में निपुणता हासिल करने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है.'
वो कहते हैं, "मेरी मातृभाषा भोजपुरी है. मैंने हिंदी सीखी है. कई हिंदी विद्वानों को पढ़ा है. मैं रंगमंच करता था जिसके लिए आपकी हिंदी और उर्दू में पकड़ अच्छी होनी चाहिए"
हालांकि, मनोज बाजपेयी को अपनी नौ साल की बेटी को हिंदी सिखाने में बहुत दिक्कत आ रही है. वो कहते हैं कि उनकी बेटी को हिंदी नहीं आती.
मनोज बाजपेयी बताते हैं,"मुंबई जैसे शहर में मेरी बेटी को हिंदी सिखाना एक चुनौती है. मेरी बेटी हिंदी नहीं बोल पाती है. उसके स्कूल में अध्यापक, छात्र, उसके मित्र और घर के पास के मित्र और उनके मां-बाप सभी अंग्रेजी में बात करते हैं. सिर्फ मैं यानी उनका पिता ही उनसे हिंदी में बात करता हूं जिसे वो पिछड़ा हुआ समझती है. लेकिन मैं उनसे अंग्रेजी में बात नहीं करता क्योंकि कोई तो हो जो उससे हिंदी में बात करे."
मनोज बाजपेयी फ़िल्म उद्योग में करीब 25 साल हो गए हैं. अभिनय की दुनिया में उन्होंने अपना लोहा मनवाया है.
अपने सफ़र को लेकर वो कहते हैं कि उनकी 'ज़िद और भैंस जैसी चमड़ी ने उन्हें हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री जैसी मुश्किल जगह पर टिका कर रखा' और इस मुक़ाम पर पहुंचाया.
मनोज बाजपेयी एक तरफ गली गुलियाँ, रुख और मिसिंग जैसी कंटेंट फ़िल्मों का हिस्सा रहे हैं, वही दूसरी तरफ वो सत्यमेव जयते, भागी 2 जैसी व्यावसायिक फ़िल्मों में भी दिखे.
मनोज बाजपेयी का मानना है कि 'बागी 2' और 'सत्यमेव जयते' जैसी फ़िल्मों में काम करना ज़रूरी हो जाता है क्योंकि ये फ़िल्में उन्हें व्यवसायिक विश्वसनीयता प्रदान करती है जिससे वो दूसरी फ़िल्मों का हिस्सा बन सकें.
कई अभिनेता अपने फ़िल्मी सफ़र को क़िताब में तब्दील कर रहे हैं लेकिन मनोज बाजपेयी का कहना है कि वो अपनी ऑटो-बायोग्राफी तभी लिखेंगे जब उनमें इतनी ताकत आ जाए कि वो अपने सफर को महान ना बताकर सच बताने की हिम्मत दिखा सकें. ऐसा होने पर ही वो किताब लिखेंगे.
मनोज बाजपेयी जल्द ही अमेज़न प्राइम की सिरीज़ "द फैमिली मैन" में नज़र आएंगे. राज एंड डीके निर्देशित इस सीरीज़ में प्रियामणि, शारिब हाशमी और गुल पनाग ने अहम भूमिका निभाई हैं.
वे कहते हैं, "यह अनुचित है कि यह दुनिया के कुछ हिस्सों में अवैध बताया जाता है. वानुआतु अच्छे कावा का उत्पादन कर सकता है और यह हमारे लिए महत्वपूर्ण भी हो सकता है. बस इसे गलत समझा गया है."
अभिनेता मनोज बाजपेयी की गिनती हिंदी फ़िल्म जगत के उन अभिनेताओं में होती है जिनकी हिंदी भाषा पर मजबूत पकड़ मानी जाती है.
मनोज
बाजपेयी ने सत्या, शूल, अलीगढ़ और गैंग्स ऑफ़ वासेपुर जैसी फ़िल्मों के जरिए अभिनय की दुनिया में अपनी धाक जमाई है. वो हिंदी को अपनी ताकत मानते
हैं. मनोज बाजपेयी ने बीबीसी से बातचीत में हिंदी भाषा और फ़िल्म इंडस्ट्री को लेकर कहा," अगर मैं हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में काम कर रहा हूं और अगर मैं हिंदी जानता हूं तो ये मेरी कमज़ोरी नहीं है. ये मेरी ताकत है. जिसको हिंदी नहीं आती है, वो अपना सोचे."
ये माना जाता है कि हिंदी फ़िल्मों में काम कर रहे अधिकतर अभिनेताओं को हिंदी भाषा नहीं आती. इसलिए उन्हें फ़िल्म की स्क्रिप्ट भी रोमन में लिखकर दी जाती है लेकिन मनोज बाजपेयी फ़िल्म की पटकथा देवनागरी भाषा में ही लेते हैं.
वो कहते हैं कि किसी की ये हिम्मत नहीं होती कि उन्हें रोमन में स्क्रिप्ट दे. ऐसा हुआ तो वो स्क्रिप्ट फेंक देंगे.
मनोज बाजपेयी ने ये माना कि हिंदी 'उनकी मातृभाषा नहीं है और हिंदी में निपुणता हासिल करने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है.'
वो कहते हैं, "मेरी मातृभाषा भोजपुरी है. मैंने हिंदी सीखी है. कई हिंदी विद्वानों को पढ़ा है. मैं रंगमंच करता था जिसके लिए आपकी हिंदी और उर्दू में पकड़ अच्छी होनी चाहिए"
हालांकि, मनोज बाजपेयी को अपनी नौ साल की बेटी को हिंदी सिखाने में बहुत दिक्कत आ रही है. वो कहते हैं कि उनकी बेटी को हिंदी नहीं आती.
मनोज बाजपेयी बताते हैं,"मुंबई जैसे शहर में मेरी बेटी को हिंदी सिखाना एक चुनौती है. मेरी बेटी हिंदी नहीं बोल पाती है. उसके स्कूल में अध्यापक, छात्र, उसके मित्र और घर के पास के मित्र और उनके मां-बाप सभी अंग्रेजी में बात करते हैं. सिर्फ मैं यानी उनका पिता ही उनसे हिंदी में बात करता हूं जिसे वो पिछड़ा हुआ समझती है. लेकिन मैं उनसे अंग्रेजी में बात नहीं करता क्योंकि कोई तो हो जो उससे हिंदी में बात करे."
मनोज बाजपेयी फ़िल्म उद्योग में करीब 25 साल हो गए हैं. अभिनय की दुनिया में उन्होंने अपना लोहा मनवाया है.
अपने सफ़र को लेकर वो कहते हैं कि उनकी 'ज़िद और भैंस जैसी चमड़ी ने उन्हें हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री जैसी मुश्किल जगह पर टिका कर रखा' और इस मुक़ाम पर पहुंचाया.
मनोज बाजपेयी एक तरफ गली गुलियाँ, रुख और मिसिंग जैसी कंटेंट फ़िल्मों का हिस्सा रहे हैं, वही दूसरी तरफ वो सत्यमेव जयते, भागी 2 जैसी व्यावसायिक फ़िल्मों में भी दिखे.
मनोज बाजपेयी का मानना है कि 'बागी 2' और 'सत्यमेव जयते' जैसी फ़िल्मों में काम करना ज़रूरी हो जाता है क्योंकि ये फ़िल्में उन्हें व्यवसायिक विश्वसनीयता प्रदान करती है जिससे वो दूसरी फ़िल्मों का हिस्सा बन सकें.
कई अभिनेता अपने फ़िल्मी सफ़र को क़िताब में तब्दील कर रहे हैं लेकिन मनोज बाजपेयी का कहना है कि वो अपनी ऑटो-बायोग्राफी तभी लिखेंगे जब उनमें इतनी ताकत आ जाए कि वो अपने सफर को महान ना बताकर सच बताने की हिम्मत दिखा सकें. ऐसा होने पर ही वो किताब लिखेंगे.
मनोज बाजपेयी जल्द ही अमेज़न प्राइम की सिरीज़ "द फैमिली मैन" में नज़र आएंगे. राज एंड डीके निर्देशित इस सीरीज़ में प्रियामणि, शारिब हाशमी और गुल पनाग ने अहम भूमिका निभाई हैं.
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